मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

देव प्रबोधनी एकादशी /देवोत्थानी एकादशी (देव दीपावली ) ।

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को " देवोत्थानी एकादशी " कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।

भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र :-

भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा ,शंख,मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के बीचये श्लोक पढकर जगाते हैं-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
 त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥

व्रत और पूजा :-
 श्रीहरिको जगाने के पश्चात् उनकी षोडशोपचारविधि से पूजा करें। अनेक प्रकार के फलों के साथ नैवेद्य (भोग) निवेदित करें। संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जागकर हरि नाम-संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। विवाहादिसमस्त मांगलिक कार्योके शुभारम्भ में संकल्प भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है। अतएव चातुर्मासमें प्रभावी प्रतिबंध देवोत्थान एकादशी के दिन समाप्त हो जाने से विवाहादि शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।


व्रत महात्म :-
पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें वर्णित एकादशी-माहात्म्य के अनुसार श्री हरि-प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। इस परमपुण्यप्रदाएकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है। इस एकादशी के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, होम करते हैं,वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है। देवोत्थान एकादशी के दिन व्रतोत्सवकरना प्रत्येक सनातनधर्मी का आध्यात्मिक कर्तव्य है।

शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

क्या आत्महत्या ही अंतिम विकल्प है ??

अनुपम (काल्पनिक) बहुत  ही सरल, शांत एवम् सौम्य स्वभाव का एक नौजवान था। जीवन बहुत अच्छी तरह चल रही थी। घर में  सभी लोग थे जैसे मा, पिता जी,भाई,चाचा ,दादी ,दादी और पिता  की मां (माई) ।

अनुपम  ग्रामीण क्षेत्र से स्नातक के बाद अन्य स्नातक के लिए अपने शहर में चला गया । वहां भी उसने अन्य स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई अन्य विधाओं में किया । एक मध्यम एवं संभ्रांत परिवार में पला-बढ़ा जिसको बाल्यावस्था में कभी  किसी  ने पैसे कमाने या छल-प्रपंच की शिक्षा नहीं मिली थी। जीवन के साथ उम्र बढ़ता गया और इसी बीच दादा (बड़े पिता जी)  की मृत्यु से वह बहुत आहत हुआ। अनुपम जिज्ञासु एवम् साधक प्रवृत्ति होने के कारण आज भी शिक्षा के मोहमाया से बाहर नहीं निकल पा रहा था  कि घर वालों ने शादी जैसे अटूट बंधन में बंध दिया । बिना पैसे के जिम्मेदारी या जिम्मेदार होना दोनों असंभव है और लाख अनुपम के माना करने पर भी घरवालों ने शादी के बंधन में बांध दिया । अनुपम शादी ना कर सम्पूर्ण जीवन शिक्षा एवम् समाज कार्य में सौंपना चाहता था परन्तु घर वालों के प्रपंच से वह बच ना सका । अनुपम को समाज और शिक्षा से महत्वपूर्ण नौकरी का अहसास हुआ लेकिन भ्रष्टाचार और शारीरिक अक्षमता के कारण कोई सफलता ना मिली और इसी बीच वह एक संतान का पिता भी बन गया। अब जिम्मेदारियां बढ़ गयी लेकिन वह कुछ करने में असमर्थ था । शारीरिक अक्षमता के कारण वह किसी कंपनी या शारीरिक श्रम का कार्य करने में असमर्थ समझने के कारण कुछ व्यवसाय के लिए सोचने लगा लेकिन  वह यह बात अपने पिता  से नहीं कह सकता था क्योंकि उसके पिता पूर्वाग्रही थे जिन्हें हर एक कार्य में वही दिखता था  कोई भी व्यक्ति कुछ करने के पहले नहीं सोचता यथा - बाहर ना निकलो अन्यथा दुर्घटना हो  जाएगी , व्यवसाय नहीं करो नही खेत बेच दोगे  ।।

अनुपम के पिता में बहुत गुण जैसे सामाजिकता, परिवारवाद ,बहन, भाई और माता -पिता सबके भले की बात लेकिन वह कभी अपने बच्चों  को समझ नहीं पाए । अनुपम भी अपने मां को कभी इतना बड़ा दुख नहीं देना चाहता था लेकिन शायद जीवन से हार मान चुका था और एक दिन वह पत्नी और अपनी छोटी बच्ची के साथ अप्राकृतिक रूप यानी आत्महत्या कर लिया । वह अपनी पत्नी बच्चो को इस क्रूर दुनिया में कष्ट के जीवन न मिले इसलिए पहले मासूम को जहर पिलाया और फिर पत्नी को और पत्नी - बच्ची को पूर्ण मृत्यु देने के पश्चात खुद भी कल के गाल में समा गया ।