शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

एक परिचय - आज की महिला

मित्रो मै एक छोटा प्रयास कर रहा हूँ , शायद कोई त्रुटि या भरी शब्द मिले तो .....माफ करना । इसी आशा और विश्वास के साथ मै अपनी बात शुरू करता हूँ। महिला , स्त्री , नारी और अंग्रेजी में " woman " मानव संस्कृति की एक महत्वपूर्ण अंग है । एक स्त्री को हम कई रूपों में जैसे की एक स्त्री - माँ के रूप में , बहन के रूप में , पत्नी के रूप में देख सकते है


"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता "
जहाँ नारी का सम्मान होता है वह सुख और समृधि का वास होता है , ऐसा हमारे पवित्र ग्रंथो कहा गया है नारी को देवी का प्रतीक भी मानते है

आज अख़बार और समाचार में सभी जगहों पर एक सबसे विशिष्ठ खबर होती है -
१. महिला अपने बच्चे के साथ खुदखुशी की ,(जली या नौवी माजिले से कूदी कर जान दी )
२. महिला के साथ सामूहिक बलात्कार या बलात्कार करने का प्रयास
३. दहेज़ के भूख की आग में जली " सीमा , सुधा और पता नही कितनी
४. माँ के कोख में भी नहीं बक्शा जा रहा है
ऐसी स्थिति हो गयी है , कि देश का ,समाज का पतन सुनिश्चित हो गया है आखिर वो भो तो किसी कि बहु ,बेटी और माँ होती है क्षमा करियेगा अधिक बलात्कार के मामलों में बलात्कारी समाज का नेता ,उसका कोई परिजन/ नजदीकी रिश्तेदार या बड़े पुलिस अधिकारी ( उनके परिजन) होते है जो कि समाज के रक्षक माने जाते है और खुद को साबित करने की फिराक में रहते है

कही से मुझे प्राप्त ये पंक्तिया बता रही है कि नारी के क्या रूप हो सकते है , माँ , बहु , बेटी या बहन होने के साथ साथ -

"तुमही दुर्गा, तुमही काली, तुम्हरी महिमा बड़ी निराली
तुमही गीता ,तुमही सीता , तुमसे मर्द न कउनउ जीता
तुम ही से घर मथुरा काशी , तुमही घर कि सत्यानाशी "

ज्यादा मै कुछ नही कहूँगा , यदि कुछ दिनों तक यही चलता रहा तो यही सीता और गीता ...दुर्गा और काली का रूप धारण कर लेगी और मथुरा काशी को छोड़ कर सत्यानाश का जो तांडव प्रस्तुत करेगी कि सम्पूर्ण सृष्टी का विनाश हो जायेगा


आप सभी मित्रो से, भाइयो से , बहनों से और माताओ से आखिर कब तक !!! अपने विचार कमेन्ट बॉक्स में अवश्य लिखे ।

क्या है प्राणायाम ???

प्राण का अर्थ है ऊर्जा। इस ऊर्जा से सारा स्थूल, भौतिक जगत हुआ है और इसी प्राण ऊर्जा से यह हमारा स्थूल शरीर भी हुआ है। अगर मनुष्य के शरीर में से एक सैल निकालकर माइक्रोस्कोप में रख कर देखो तो क्या दिखेगा। मॉस , अगर आप मॉस को फ़िर वापिस विघटित करें तो उसमे से निकलेगा एटम । विज्ञान कहता है कि उसमें से ऐसी ऊर्जा निकलेगी जो हमारी समझ के बाहर है।

प्राणायाम का अर्थ है अपनी - प्राणऊर्जा को विस्तारित करना । चीन में प्राण को ‘ ची ‘ कहते हैं । एक्युप्रेशर, एक्यूपंचर इसी ऊर्जा के आधार पर है। इनकी थ्योरी कहती है कि हमारे शरीर में मैरीडियन हैं, जिनमें ऊर्जा प्रवाहित हो रही है। जब जब यह ऊर्जा कहीं ब्लाक हो जाए, तब रोग होते हैं। अब अगर आप शरीर का चीर - फाड़ करके देखें तो ऐसी कोई मैरीडियन दिखेगी नहीं। परन्तु जिसे वह मैरीडियन कहते हैं या योग में जिसको नाड़ी कहते हैं , वह भौतिक नहीं है, वह स्थूल नहीं है ; बल्कि सूक्ष्म है।

हमारी एक नसें हैं जो स्थूल रूप में दिखाई पड़ रही हैं । पर दूसरी स्थूल प्रवाह की नसें हैं , जिसमे से प्राणऊर्जा दौड़ रही है। अब इसी प्राण के पाँच प्रकार हैं - अपान, व्यान, उदान, समान, प्राण। हमारा पूरा शरीर इसी प्राण के आधार पर चल रहा है। प्राण वायु का क्षेत्र कंठ नली से श्वास पटल के मध्य है, इसको यह प्राणवायु कंट्रोल करता है ।

अपान- नाभि के नीचे जितने अंग हैं, इनकी कार्य प्रणाली को अपानवायु नियंत्रित करता है। जो कुछ हम खाते हैं उसको पचाना और जो व्यर्थ है उसे मल - मूत्र के रूप में बाहर निकलना ; यह कार्य अपानवायु से संचालित होते हैं। अपान हमारे पाचनक्रिया को कंट्रोल करती है, जैसे गालब्लेडर, लिवर, छोटी आंत, बड़ी आंत ; ये सब इसी क्षेत्र में आते हैं।

उदान - कंठ के साथ जुड़े जितने भी अंग हैं; आँख, कान, नाक, जीभ, बोलना, स्वाद लेना; ये ज्ञानेन्द्रियाँ जो हैं, इनके सारे कार्य उदानवायु से होते हैं। जब तक उदानवायु है , तब तक आँखें देखेंगी, कान सुनेंगे, जीभ बोलेगी, नाक सूंघेगा। उदानवायु के द्वारा हमारी जो कर्मेन्द्रियाँ हाथ - पैर और नाभि के ऊपर के सारे अंग ; जैसे हृदय की धड़कन , हृदय की धमनियां आती हैं, फेंफडे यह सब उदान की शक्ति से कार्य करते हैं।

समान- यह हमारे शरीर के मध्य भाग में होती हैं। अपान और उदान की जो बैलेंसिंग है, यह समान वायु के द्वारा होती है। समान का कार्य बैलेंसिंग का है।

व्यान - यह प्राण हमारे पूरे शरीर में है। इसको हम सर्वव्यापी भी बोलते हैं। अर्थात जो पूरे शरीर में फैला हुआ है।
इन पंचप्राणों के भी पाँच उपप्राण हैं - जैसे हिचकी, आंखों का झपकाना, यह भी प्राण से हो रहा है।

अब प्राणायाम का सीधा सम्बन्ध इन्ही पंचप्राणों से है। पूरे शरीर का कार्य इन पंचप्राणों से हो रहा है और इन पंचप्राणों पर सीधा प्रभाव देता है- प्राणायाम।

प्राणायाम का मतलब सिर्फ़ श्वास को अन्दर-बाहर करना नहीं है, इसका सम्बन्ध सिर्फ़ श्वासों से नहीं है। बल्कि प्राणायाम का सम्बन्ध आपके शरीर में मौजूद इन पंचप्राणों से है और आप देखेंगे कि इन पंचप्राणों के ऊपर आपका कंट्रोल पूरा बन जाए । तब तुम्हारा दिल तब तक धड़केगा, जब तक तुम चाहोगे। अभी तो अचेतन मन से सारा कार्य हो रहा है हमारा मस्तिष्क, हमारा हृदय, ज्ञानेन्द्रियों के सारे कार्य उदानवायु के द्वारा कंट्रोल हो रहे हैं। उदान का क्षेत्र क्या है -इसकी समझ आती है प्राणायाम से।

अब प्राणायाम भी कई प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ प्राणायाम ऐसे हैं, जिससे शरीर में उष्मा बढ़ाई जाती है। कुछ प्राणायाम ऐसे हैं जिससे शरीर में शीतलता बढ़ाई जाती है। कुछ ऐसे है जिससे मस्तिष्क की और श्वास की बैलेंसिंग की जाती है।

बहिरंग के बाद योग के अंतरंग साधन चार हैं। बहिरंग साधन - यम, नियम , आसन , प्राणायाम के बिना अंतरंग में प्रवेश नहीं हो सकता। जीवन में अस्तेय, सत्य , ब्रह्मचर्य नहीं है तो आसनों का कोई लाभ नहीं । संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर - प्रणिधान में गुरु भी समाहित है। ईश्वर या गुरु के बगैर इस मार्ग में प्रवेश सम्भव नहीं है। और इसकी अनुभूति के लिये संतोष, तप बहुत बड़े अस्त्र हैं। तो जब यह नियम का पालन करते हुए आसन करते हैं , तो हम आसन द्वारा अपने अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष को भी प्रभावित कर सकते हैं।

हमारे शरीर के भीतर मौजूद स्त्राव - ग्रंथियों और कैमिकल के कारण हमारे मूड बनते हैं। इसका मतलब जब तुम्हें गुस्सा आया होता है तो गुस्से में भी तुम्हारे गुस्से का कारण तुम्हारा अशुद्ध शरीर है। अशुद्ध को मैं एक किनारे भी रख दूँ, तो भी मैं यह कहूँगी कि अशुद्ध मस्तिष्क है। इड़ा और पिंगला का बैलेंस नहीं है। सुषुम्ना तो क्या जागृत होगी, सत्य तो यह है कि इड़ा भी जागृत नहीं है। बायीं श्वास चलने का मतलब यह नहीं कि तुम्हारी इड़ा चल रही है। और दायीं चल रही हो तो इसका मतलब यह नहीं कि पिंगला चल रही है, क्योंकि इड़ा और पिंगला तो सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं उनको भी जागृत करना पड़ता है। और इड़ा और पिंगला को जागृत करने के लिये आसन, प्राणायाम अत्यावश्यक हैं। जिनकी इड़ा जागृत हो, वह बहुत क्रियात्मक, रचनात्मक, बुद्धिमान, चिंतनशील , ग्रहणशील व्यक्ति होता हैं। जितने वैज्ञानिक होते हैं , इनकी इड़ा जागृत होती है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि तुम कहो कि दायीं नासिका बंद कर बायीं चला लो और कहो कि इड़ा चल रही है , ऐसा नहीं है यह मूलाधारचक्र से प्रारम्भ हो कर आज्ञाचक्र पर समाप्त होती है, यह इड़ा का सूक्ष्ममार्ग है।


नाड़ी का अर्थ नसें नहीं है। नाड़ी का अर्थ है प्रवाह। मूलाधारचक्र से शुरू हो कर आज्ञाचक्र पर उसका समापन होता है। और इड़ा और पिंगला दोनों ही मूलाधार से प्रारम्भ हो कर आज्ञा तक पहुँचती हैं। एक तीसरी नाड़ी जिसे सुषुम्ना कहते हैं , यह भी आज्ञा तक आती है, इसीलिए आज्ञाचक्र को प्रयाग भी बोलते हैं। गंगा , यमुना , सरस्वती ; गंगा है - पिंगला। यमुना है - इड़ा और सरस्वती है सुषुम्ना।

बहार जो भौतिक प्रयाग हैं , यहाँ पर भी सरस्वती दिखाई नहीं पड़ती । परन्तु हिंदू ऐसा मानते हैं कि सरस्वती लुप्त है , अदृश्य है , पर बह रही है । जहाँ गंगा , यमुना , सरस्वती तीनो धारायें मिलती हैं , उसी को कहते हैं प्रयाग । तो एक यह भी प्रयाग है और एक हमारे भीतर प्रयाग है । जो भीतर प्रयाग है उसको कहते हैं आज्ञाचक्र ।

जिसकी पिंगला जागृत हो वह बहुत कर्मशील व्यक्ति होता है । कर्मशील व्यक्ति निष्काम कार्य करता है । वह कार्य को किसी अर्थ के लिए नहीं करता । अगर वह धन भी कमाएगा तो धन के पीछे भी उसकी धारणा समाज - कल्याण या देश - कल्याण के लिए होगी । जिसकी पिंगला जागृत हो वह एक कुशल राजनेता हो सकता है , योद्धा हो सकता है , एक राजनीतिज्ञ हो सकता है , आर्मी का जनरल हो सकता है । यह जो लोगों को प्रोमोशंस मिलते हैं , यह ऐसे ही नहीं मिल जाते । उनकी पिंगला जागृत होती है , उनकी पिंगला जागृत होई है इसलिये उनको यह तरक्कियां मिलती हैं । जिनकी पिंगला जागृत होती है उनके लिए प्रकृति ऐसे संयोजन खड़े कर देगी , इसीलिए उनकी उत्तरोत्तर उन्नति होती जाती है ।

जो लोग जीवन में उन्नत नहीं हो पाते, जो कर्मशील नहीं हैं, जो चिंतन - मननशील नहीं हैं ; मतलब यह कि शरीर जरुर उनका मनुष्य का है, पर उनकी न इड़ा जागृत है, न पिंगला। इसीलिए खाए - पीए, भोग, भजन और मृत्यु ; बस उनका जीवन इतना ही है ।
इसका अर्थ यह भी हुआ कि अगर साधक विशेष प्रयास करे और अपनी इड़ा और पीड़ा को जागृत करे , तो जो गुण उसके पास नहीं भी हैं , वे भी आ जायेंगे । इड़ा जागृत होगी तो तुम्हारा मस्तिष्क उन्नत हो जायेगा, चिंतनशील हो जायेगा और चिंतन - मनन वाले व्यक्ति अपने जीवन में बहुत से उपलब्धियों को प्राप्त करते हैं ।
कर्मशील व्यक्ति अपने जीवन में सम्मान और प्रतिष्ठा को पाते हैं । उनके लिए जीवन में एक उदेश्य होता है , तो उनकी बौद्धिक क्षमता विकसित होती है ।
जिसको हम मूर्ख कहते हैं, वह कौन व्यक्ति हैं ? जिनके मस्तिष्क का आधा हिस्सा सोया होता है । मस्तिष्क का तीन प्रतिशत हिस्सा तो साधारण लोगों का जगा होता है ।
जब आप आसन, यम, नियम, प्राणायाम अपने जीवन में लेकर आते हैं और प्रतिदिन इसका अभ्यास करते हैं , अगर छ: महीने से एक साल तक बराबर श्रद्धा भाव से शरीर का शुद्धिकरण करते हुए नेति, प्रक्षालन , कुंजल करते रहें तो जीवन में प्रत्याशित उन्नति दिख जायेगी ।
जिनकी इड़ा और पिंगला जागृत होगी, उन्ही के सुषुम्ना के जागृत होने की सम्भावना बनेगी । जिनकी ये तीनो जागृत हैं , वही चक्रों का अनुसंधान कर सकेगा । और जो चक्रों का अनुसंधान करेगा, उसी के कुंडलिनी जागरण हो सकेगा । और जब कुंडलिनी मूलाधार से उठ कर मणिपुर , अनाहद , विशुद्ध , आज्ञा इत्यादि चक्रों का भेदन करती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है , तब यहीं पर पहली सविकल्प समाधि घटित होती है ।
अपना उद्धार अगर चाहते हो तो तुम्हें यह बात समझ लेनी चाहिए कि ज्ञान सुना - सुनाया मात्र कुछ सूचनायें हैं, जो थोड़ी देर के लिए तुम्हें रस देती हैं । लेकिन उसके बाद तुम्हारे किसी काम की नहीं। वर्षों से सत्संग सुन रहें है, लेकिन सुनना तो बस कानों तक ही गया जीवन का रूपांतरण तो हुआ ही नहीं ।
ज्ञान का प्रतिफलन भी उन्ही को होता है, जिनमें विवेक, वैराग्य, मुमुक्षता, सत्संग आदि गुण होते हैं । जिनमे यह चारों गुण नहीं होते, उनको सिर्फ़ एक अभिमान होता है कि हम ज्ञान सुनते हैं, हमें सब पता है। लेकिन अपने चित्त के, अपने मन के साक्षी तो तुम हो । तो यम, नियम, आसन, प्राणायाम अगर विधिवत् ढंग से अगर जीवन में आए…….. अगर केवल प्राणायाम के साथ ही गहरी दोस्ती हो जाए तो आटोमैटिकली जो योग कि पांचवी अवस्था है उसमें प्रवेश हो ही जायेगा, वह है प्रत्याहार ।

अंत में निष्कर्षतः प्राणायाम सिर्फ इन तीन क्रियायो का संयोग है और जो भी है वो उसके प्रकार है ....

1.पूरक:- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं।
2.कुम्भक:- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।
3.रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं।

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

प्रथम मधुर मिलन ...

विता के परिपेक्ष्य में:-

जब एक नव-विवाहिता अपने ससुराल जाती है और रात्रि की पहली मिलान बेला आती है तो उस नाव-युवती के हाव भाव क्या होते है ? उसका प्रथम पंक्ति में विवरण है और दूसरी पंक्ति में उसके आंतरिक हाव्-भाव एवम मिलान का वर्णन है


वो अक्षत यौवना, रात्रि पहर ,
वो मकरंदो से भरी हुई।
कातिल नैन और लाल अधर ,
शर्मो में लिपटी छुई -मुई।।

मन में उठती उद्वेग लहर ,
वो सकुचाई और सिमट गई।
नैनन स्नेह और हुई निडर ,
भौरे से मिली और पिघल गई।।

नव यौवन के पहले मिलने का कुछ शब्दों में संजोने का छोटा सा प्रयास किया है। इसमें प्रियतम अपने प्रेमी से पहले मिलन पर क्या हाव भाव देती है उसका अलंकृत वर्णन है ।।
मधुर मिलन


निवेदन :-
इस पद्य में कम शब्दो में बहुत कुछ लिखने का प्रयास किया है और विद्वानों से निवेदन है कि इसकी व्याख्या करे और किसी भी त्रुटि के लिए सुझाव आमन्त्रित है




मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

जल का संरक्षण

सूखा , वर्षा, त्रासदी , पानी के सब मूल ।
जल का दोहन न करे , प्रकृति होगी प्रतिकूल ।।

प्रकृति होगी प्रतिकूल ,पड़ेगा भयंकर सूखा ।
वन, पक्षी और मानव , बूँद बूँद को तरसा ।।

कहत कवी अनुराग , जल का करो संरक्षण ।
प्रकृति होगी खुशहाल , सबका होगा रक्षण ।।