तीर्थराज प्रयाग में जगह-जगह मठ और मंदिर बिखरे पड़े हैं लेकिन कुछ मंदिरों का पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व है जिनमें पुराने शहर में स्थित कल्याणी देवी का मंदिर भी है जिसको शक्तिपीठ कहा जाता है। यहां मां के दर्शन-पूजन के लिए शहर के अलावा दूर-दराज से भी हजारों श्रद्धालु व देवीभक्त आते हैं।
कल्याणी देवी मंदिर के पुजारी व प्रबंधक श्याम जी पाठक बताते हैं कि पुराणों में मां के 51 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है जिसमें मां कल्याणी का भी विशेष उल्लेख है। ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती की तीन अंगुलिया गिरी थीं।
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माँ कल्याणी देवी |
अलोपशंकरी देवी के प्रसंग में ५१ पीठों की कथा के क्रम में माँ कल्याणी का भी वर्णन आया है । मत्स्य पुराण के १०८ वें अध्याय में कल्याणी देवी का वर्णन पाया जाता है । यही माँ कल्याणी महर्षि भरद्वाज की अधिष्ठात्री है
" तरयोत्तरे अस्ति ललिता कल्याणीति च गीयते दर्शनस्तस्य पूजाभिः सर्वेषां सर्वकामदा ।। "
-( प्रयाग माहात्म्य अध्याय ७६. श्लोक १७ )
इस प्रकार प्रयाग माहात्म्य के अनुसार कल्याणी और ललिता एक ही हैं , किन्तु यहाँ पृथक अस्तित्व पाया जाता है जिसकी चर्चा आगे की जायेगी । ब्रह्मवैवर्त पुराण के तृतीय खण्ड में वर्णित प्रसंग के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य ने प्रयोग में भगवती की आराधना करके मो कल्याणी देवी की ३२ अंगुल की प्रतिमा की स्थापना की है । कल्याणी देवी की प्राचीनता के पुरातात्विक प्रमाणों के संदर्भ में पुरातत्ववेत्ता डा ० सतीश चन्द्र काला का एक शोधपूर्ण लेख है , जिसके अनुसार माँ कल्याणी की प्रतिमा कम से कम १५ सौ वर्ष पुरानी है । वर्तमान समय में यह एक जागृत पीठ बन चुकी है । नगर के कल्याणी देवी मुहल्ले में एक भव्य मंदिर में स्थापित दिव्य आभा से परिपूर्ण माँ कल्याणी की एक चतुर्भुजी प्रतिमा स्थापित है , जो सिंहस्थ है प्रतिमा के शीर्ष भाग पर आभामण्डल है तथा मस्तक पर योनि लिंग व नाग सुशोभित है । मध्य प्रतिमा के वाम भाग में दस महाविद्याओं में से एक देवी छिन्नमस्ता की प्रतिमा स्थापित है । दाहिनी ओर आदिदेव भगवान शंकर की प्रतिमा माँ पार्वती के साथ है । मुख्य प्रतिमा के ऊपर दायें भाग में प्रथम पूज्य देवता गणेश जी की आकर्षक प्रतिमा है । यहीं पर बाईं ओर हनुमान जी की प्रतिमा भी है इन प्रतिमाओं का नवरात्र व विशेष अवसरों पर भव्य शृंगार किया जाता है । मंदिर में दोनों नवरात्रों पर शतचण्डी महायज्ञ होते हैं उसी दौरान प्रतिदिन देवी के विविध शृंगार किये जाते हैं । इनके अतिरिक्त आषाढ़ पक्ष की अष्टमी , चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ( डेढ़िया ) के अवसर पर देवी माँ का विशेष शृंगार किया जाता है , जिसे देखने के लिये भारी भीड़ उमड़ती है ।
मनोकामना कुंड
इस मंदिर की एक विशेषता ये है कि मंदिर परिसर में ही एक कुंड भी है, जिसकी मान्यता यह है कि जो भी श्रद्धालु इस मनोकामना कुंड में मातारानी से सच्चे ह्रदय से मांगता है. उसकी मुराद जरूर पूरी होती है.
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मनोकामना कुण्ड |
यहां दूर-दराज से हजारों लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर लाल रंग के कपडे में लिपटे निशान को चढाने के लिए गाजे-बाजे के साथ आते हैं. इसे मां के प्रति भक्तों की आभार पूजा के रूप में भी माना जाता है. मां कल्याणी के दरबार में इस दौरान कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं. जोकि मां की भव्यता में चार चांद लगा देते हैं.
कैसे पहुँचे
- प्रयागराज रेलवे स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर कल्याणी देवी का मंदिर है।
- सिविल लाइंस बस अड्डे व जीरो रोड बस अड्डे से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर मंदिर बना हुआ है।
- कोई श्रद्धालु बमरौली एयरपोर्ट पर उतरता है तो उसे मालवीय नगर कल्याणी देवी मंदिर में करीब 11 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी।